Saturday, April 11, 2015

HOW ILLUMINATI WORKS??

इल्युमिनाटी का बृहद् इतिहास—11

ऐस्टोर्स परिवार
इस परिवार का प्रमुख संस्थापक था जान जेक ऐस्टर 1763—1884 था। इसका जन्म वाल्डोर्फ जर्मनी के ज्यूश परिवार में हुआ था प्रारम्भिक समय में ये एक माँस विक्रेता कसाई का काम किया करता था। 1784 में ये अमेरीका में आ गया था। जब यह अमेरीका आया था उस समय इसके पास एक फूटी कोैड़ी भी नहीं थी किन्तु इसने वहाँ आने के 2—3 वर्षों के बाद मेसोनिक समूह के साथ अपने सम्बन्ध स्थापित किये। वहाँ न्यूयार्क कि एक लाज संख्या—8 में इसने अपने रहने का स्थान बनाया। इसे हॉलेण्ड लॉज कहा गया तथा वहाँ रहने वाले कईयों के इल्युमिनाटी से सम्बन्ध थे। 1788 में एस्टॉर इस लॉज का स्वामी बन गया। इस लॉज में रहने वालों में रसैल 1811—1871 भी प्रमुख है। एस्टार जब अमेरीका में आया था तो वह अंग्रेजी नहीं जानता था।
जॉन जैकब एस्टर हमेशा कुछ कारणों से प्रसिद्ध कि वह एक शान्त ह्रदय वाला व्यक्ति था।
वहाँ अमेेरीका में पानी के जहाजों में व्यापार व सौदों के दौरान उसे अत्यधिक लाभ मिला और वो रातोंरात धनि बन गया।
ऐसटार ने जार्ज क्लिंटन केसाथ काम किया इसने इल्युमिनाटी के भूमि सम्बन्धी व्यापार में भी काम किया ये 300 परिषद के लिये तथा मुख्य 13 परिवारों के लिये काम किया।। जान कालमन के आश्चर्य जनक तथ्य प्रकट किया कि ये एस्टर वास्तव में ब्रिटिश सरकार का एक गुप्तचर था। इल्युमिनाटी के 13 परिवारों का अमेरीका और ब्रिटानिया कबीले के गुप्तचर विभाग से खासे सम्बन्ध थे, तथा समाज में असामाजिक गतिविधियों को परिणाम तक पहुँचाने में इनकी कुत्सित भूमिका रही थी। 1817 से पहले इसने फर के व्यापार में सम्मिलित होना उचित समझा और उसमें सम्मिलित हुआ और उसमें उसने 17 वर्षों के अन्तर्गत एकाधिकार स्थापित कर दिया।
इस फर कम्पनी ने इस परिवार को पहचान दी। एस्टार वास्तव में आसुरी शक्तियों के आगमन का मंच था। इसके तीन सम्बन्घी क्लीपर नाम के पानी के जहाज पर काम करता था। उसके सम्बन्ध लन्दन की ब्लैक हाऊस परिवार से सम्बन्ध भी थे। उसने टॉड परिवार से अपने वैवाहिक सम्बन्ध बनाएँ इनकी पत्नि भी एक ऐसे ही कम्पनी के साथ थी जो कि की ब्रेवार्ट के साथ सम्बध थे जो कि उसने अपो जो साधनपथा वह साध चुका था।


इल्युमिनाटी का बृहद्इतिहास—12

ऐस्टर परिवार के जनक वालड्रोफ और उसकी पत्नी नेन्सी ने 1930 में रूस की यात्रा की थी किन्तु किसी भी साम्यवादी की ओर से इन दोनों का कोई प्रतिकार नहीं हुआ था। वस्तुत: साम्यवादी शक्तियाँ और पूँजीवादी दोनों ही मिल कर एक इल्युमिनाटी सरकार चाहती हैं। इसीलिये ऊपरी दिखावे के रूप में वे विरोध दिखाते हैं किन्तु वास्तव में उनके मध्य किसी प्रकार का कोई वैर विरोध नहीं हैं और सारे ऐसे साम्यवादी नेता जो कि साम्यवाद का झण्डा हाथ में लिये चल रहे हैं वे अत्यधिक धनी हैं।
इसमें नेन्सी ईसाई धर्मविज्ञानी की समर्थक थी जोकि काली विद्या अथवा मेली विद्या का प्रधान व मुख्य प्रकट स्वरूप है। इसका व्यापक स्वरूप हमें बी वाइस एस सर्पेण्ट नामक पुस्तक का 2.6 अध्याय पढना चाहिये। जिसका नाम उपचार करने वाला प्रकाश एस्टर ने पिशाचों का वास्वविक इतिहास पुस्तक लिखी जो कि मेसान और साम्यवाद के प्रारूप को भी बताने वाली थी।
ब्रिटेन की एल्फा लोज में इल्युमिनाटी के परम्परया परिवारों के लोग रहा करते थे।उसे वे प्रकाशित लॉज् कहा करते थे। वहाँ एक अन्य भी आवासीय स्थल था जहाँ तथाकथित लोग रह सकते थे तथा वहाँ धक्का मुक्की वाली स्थिति नहीं हुआ करती थी। ऐसा कहा जाता है कि इल्यूुमिनाटी स्वयं में एक पवित्र संगठन है।
इस पुस्तक में अमेरीका के कई नगरों तथा औद्योगिक इकाईयों का वर्णन प्राप्त होता है जिसका यहाँ उल्लेख करना अव्यवहारिक है। इस संगठन ने विश्व के कई उद्योगों पर बैंकों पर, राजनेताओं को अपने पक्ष में साध लिया हैं तथा विश्व के सर्वाधिक धन पर अपना अधिकार बना लिया है। इनका ये लक्ष्य अभी से नहीं अपितु कई वर्षों से चल रहा है। इनका संगठन विश्व का दास बनानेकी इच्छा रखता हे।
ईवा एलिस मरैल एस्टर नामक महिला का 1902 में जन्म हुआ ये महिला अत्यन्त कठोर ओर इजिप्ट के जादू की जानकार थी तथा स्वयं का ईजिप्ट की राजकुमारी का पुनर्जन्म मानती थी। ये मरैल एस्टर तूतेन खामेन के समाधि स्थल में प्रवेश करने वाली पहली व्यक्ति थी जहाँ उसने स्वयं के लिये एक कण्ठहार प्राप्त किया। इल्युमिनाटी के 13 परिवार किसी भी संविधान को नहीं मानते अपितु वे स्वयं एक चलता फिरता संविधान हैं।
लेखक कहता है कि उसने इल्युमिनाटी के कार्यों की एक पुस्तक प्राप्त की जिसके अनुसार इल्युमिनाटी के सभी 13 परिवार धन प्राप्ती हेतु नशीली दवाईयों के व्यापार में सीधे सीधे जुड़ें हैं। और इसके लिये वे मानवता का हनन करने से भी नहीं चूकते। इन प्रधान 13 परिवारो के साथ कई अन्य परिवार भी जुडें हैं जिसमें वेस्को, मोर्टीमर, ब्लूमफील्ड, फ्रेंकोसिस आदि स्वीट्जरलैण्ड की स्लाविकोव बुल्गारिया की तथा कई स्कॉटलेण्ड के परिवार हैं ये बहुधा जेसुईट्स हैं। ग्नोस्टिक चर्च में काले तन्त्र के प्रयोग का अभ्यास किया करते हैं।
एस्टर परिवार का जन्म व नामकरा— ये परिवार एक ही स्थल पर उत्पन्न् नहीं हुआ अपितु ये ऐेस लोगों केा समूह है जिनके विरूद्ध कई कार्यवाहियाँ की गईं तथा एस्ट्रोजा परिवार के वंश से हीं हैं। वस्तुत: एस्ट्रोजा और एस्टर में शब्दसोच्चारण का भेद ही हैं। ये परिवार दक्षिणी इटली में 1600 वर्षों पूर्व की है ये दोनों शब्द एस्ट्रेट शब्द से निकले जो कि काले तन्त्रों की जननी का नाम है उसका एक अन्य नाम सेमिरेमिस भी है। प्राचीन बेबीलोन में तीन प्रधान मुखड़े थे जिसमें निमरोड यानि सूर्य सेमिरेमिस यानी चन्द्रमा और तामुज यानि शुक्र ग्रह। इनको ईजिप्ट मे क्रमश: आसिरिस, आसिस, और होरस कहा जाता है। इन्हीं तीन में से दो आईसिस यानि चन्द्रमा और होरेस यानि शुक्राचार्य के चित्रों व पाषाण मूर्त्तियों को इन्होंने वर्जिन मेरी और क्राइस्ट—चाइल्ड नामकरण कर दिया है।


इल्युमिनाटी का बृहद् इतिहास—13


1919 में रॉयल इण्सिटिट्यूट आॅफ इण्टरनेशनल अफेयर्स की स्थापना की गई।
एस्टर इसके मुख्य धन देने वालों में से थे जो कि 4 अंशों पर इल्युमिनाटी
को कवर किये हुये थे।

एस्टर परिवार का यूरोपमें समय—ये परिवार जर्मनी में सेवोय से वाल्डोर्फ
गर्इ्। वहाँ वाल्डोर्फ में कोवेन परिवार के पास कुछ विशेष आसुरिक
शक्तियाँ सुरक्षित रखी हुई थी तथा एस्टर परिवार को शक्ति थी। उस समय
यूरोप में एस्टर परिवार के पास ऐसी क्षमता नहीं थी कि वो अपनी तान्त्रिक
शक्तियों का प्रयोग कर सके। यूरोप में वर्ग भेद लम्बे समय से था वहाँ
हमारे महान् भारत की भाँति सभी को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार प्राप्त
नहीं था। इस सन्दर्भ में वहाँ अत्यधिक जड़त्व था तथा एक जाल बना हुआ था
जो कि आसानी से नहीं खोला जा सकता था। सामान्य किसान और जमींदारों में
परस्पर अत्यधिक भेद था सामान्य किसान को निम्न वर्ग का माना जाता था तथा
उन्हें जमींदारों की भाँति रहने का अधिकार नहीं था। उनमें ये परम्परा
प्राचीन रोम से ही आई थी जब कोइ्र भी व्यक्ति जब दासत्व को स्वीकार कर
लेता था तो वह सदा सदा के लिये निम्न कहलाता था। यही कारण था कि एस्टर को
यूरोप में अपने काले तन्त्र का प्रयोग करने का अधिकार नहीं था। इसीलिये
ये परिवार ऐसा स्थान ढूँढने में लगाा था जहाँ इसे कुछ सम्मान मिल तथा वह
अपने आसुरी बल का प्रदर्शन कर सके साथ ही किसी ऐसे समूह से जुड़े जहाँ ये
अपने को उच्च वर्ग के वंश वृक्ष में जोड़ सके। वहाँ वह सम्मान व धन दोनों
ही प्राप्त करने की दृष्टि से गये थे तथा जॉन एस्टर वहाँ एक बर्बर कसाई
था। उसके पुत्र जॉन जैकब (1763—1848) को अमेरीका में अपना नया एस्टर गृह
स्थापित करने की अनुमति मिल गई।
यहाँ ये बताना आवश्यक है जैसे कि मेने पहले भी बताया था कि यूरोप तथा
पाश्चात्य जगत् में इराक युद्ध तक व्यापक स्तर पर नरमाँस खाया जाता रहा।
तथा यूरोप में अफ्रिकी मनुष्यों का जू तथा उनके माँस खाने की परम्परा रही
है तो ऐसे में जब एस्टर का परिवार पूर्व में ही आसुरी शक्तियों का समर्थक
था ऐसे में वह पशुओं का कसाई था अथवा मनुष्यों का ये स्पष्ट रूप से कहना
अशक्य है। सम्भवत: वहाँ वह नरमाँस बलि का कार्य करता हो तथा उसकी आसुरी
शक्तियों में इस प्रकार की योग्यता को देख कर ही अमेरीका में उसके पुत्र
को अपना गृह बनाने हेतु चयनित किया गया।
जान जैकब एस्टर का अमेरीका जाना:— 16 वर्ष की आयु मे जैकब ने अपने कसाई
के वंशानुगत धन्धे का प्रकट रूप में त्याग कर दिया। वहाँ से वह
इंग्लेण्ड तथा वहाँ से अमेरीका गया । वहाँ से वह धन कमाने तथा अपने
परिवार के लिये आर्थिक क्षमता जुटाने के लिये अमेरीका गया था।
इस पूरे सन्दर्भ पर विहंगम दृष्टिपात् करें तो पाते हैं कि पिछले 400
वर्षों में कई आसुरी तान्त्रिक परिवारों ने दक्षिणी पश्चिमी जर्मन के
क्षेत्र मे अपना आवास स्थापित किया। चुड़ेलों का डायना के साथ सहसम्बन्ध
( विचक्रॉफ्ट एसोसिएटेड विथ डायना) नामक संगठन भी दक्षिणीपश्चिमी जर्मन
में ही क्रियाशील था तथा इसको देख कर रोमन कैथोलिक चर्च को भय उत्पन्न
होने लगा। एस्टर परिवार ने कोवेन परिवार को हेडिलबर्ग क्षेत्र नेतृत्व
प्रदान किया। तान्त्रिक कर्म पूरे दक्षिणीपश्चिमी जर्मनी में फैल गया।
1500 —1650 तक के आँकड़ेां केा देखा जाये तो वहाँ पूरे क्षेत्र में ही
तान्त्रिक कर्म अपने चरम पर था। प्राचीन जर्मन के आँकड़ेां के अनुसार
दक्षिणी पश्चिमी जर्मनी में 120 ग्राम ऐसे थे जहाँ तान्त्रिक कर्म हुआ
करता था। उस समय तक एस्टर परिवार के पास इतना सामर्थ्य, धन व सामाजिक
प्रतिष्ठा नहीं थी कि वह स्वयं को प्रस्तुत कर सके और वहाँ इस तान्त्रिक
समूह स्वयं को नेता सिद्ध कर सके 1700 के उत्तरार्द्ध तक यही स्थिति बनी
रही। परन्तु नये विश्व में उसके लिये सारे मार्ग खुले थे एस्टर ने अपने
दो पुत्रों को जैकब के लिये मार्ग प्रशस्त करने केलिये भेजा एक को
इंग्लैण्ड तथा दूसरे को अमेरीका और अन्त में अपने सबसे श्रेष्ठ पुत्र
जैकब को अमेरीका भेजा जिसे नया विश्व कहा जाता है ।
एस्टर परिवार ने आसुरि जागरण का मुख्यालय इंग्लेण्ड में बनाया ताकि वहाँ
से अमेरीका पर पूर्ण नियन्त्रण रखा जा सके। इस प्रकार अमेरीका में स्वयं
को उच्च वर्ग का सिद्ध करने के बाद एस्टर परिवार जर्मनी से इंग्लेण्ड
पहुँचा क्योंकि अब अमेरीका में उसकी उच्च पदवी थी वह निम्न वर्ग में नहीं
था अपितु वहाँ वह ऊँची जाति का था। ऐसे में कोई संशय नहीं था कि
ब्रिटेनिया कबीले की चुड़ेल महारानी ने उसे नोबेल यानि सम्मानित व्यक्ति
का पदक दिया अब वह भी नोबेल हो गया जिसे अधिकार था कि वह अपने दासों के
अंग काटकर खा सकता था उनके साथ योन शोषण कर सकता था तथा उसके मन में जब
क्रोध आये तब उनको मार सकात आदि आदि जो भी प्राचीन रेामन संस्कृति में था
वह सब अपने दासों के साथ कर सकता था।
इस प्रकार असुरों की महारानी ने जैसे ही उसे सम्मानित किया वैसे ही
इल्युमिनाटी नामक संस्था ने उसके लिये द्वार खोल दिये। यहाँ ये बताना
आवश्यक है कि इससे पूर्व उसके निम्न आसुरि परिवारों से सम्बन्ध थे उनमे
इंगलिश रॉयल्टी, इंगलिश सेटेनिज्म, इंगलिश फ्रीमेशनरी जर्मन विचक्राफ्ट,
और इटालियन ब्लेक नोबेलिटी।

इल्युमिनाटी का बृहद् इतिहास-14

विशेष समूह
नाइट्स आॅफ द हैल्मेट ये एक इल्युमिनाटी का अत्यन्त गुप्त संगठन है फ्राँसीस बेकान इसका गब्बर यानि मुखिया है। मैसानिक रीतियों केा छुपाने के उद्देश्य से इसने एक नाटक लिखा था जिसका नाम '' द आर्डर आफ द हेल्मेट ये नाटक 3 जून 1594 को मंचित किया गया था (यहाँ लेखक ने मंचन का स्थान नहीं लिखा) पुन15 दिसम्बर 1594 को इसका मंचन किया गया। दिसम्बर 1594 में ब्रिटानिया कबीेले के तथाकथित अभिजात्य वर्ग जो कि इल्युमिनाटी सम्प्रदाय में पूर्ण आसुरि भाव से दीक्षित हैं वे वहाँ मिले वे ही उस नाटक में अभिनेता के रूप में कार्य कर रहे थे इस प्रकार फ्राँसीस ने अपनी रीतिरिवाजों को बड़े ही अच्छे ढंग से छुपा कर सबके सामने जिन जिन को देना उन उन को दे दिया। इसमें लेखक ने स्वयं प्रधान नायक का अभिनय किया तथा अन्य कई संगठनों के कई सदस्य विभिन्न पात्रों में थे तथा वहीं उन्होंने अपने संदेशों को आदान—प्रदान किया तथा इस नाम दिया गया प्ले का ।
फिर इनकी चुड़ेल महारानी ने इसको विभिन्न देशों के भ्रमण के लिये भेजा था। वहाँ से उसने फ्राँस, जर्मनी, इटलरी, स्वीडन आदि कई देशों में यात्राएँ की वहाँ वह कई गुप्त संस्थाओं से मिला उनके व्यवहार को देखा और समझा ये फ्राँसीस कई गुप्त संस्थाओं से दीक्षित था तथा उनमें उसका योगदान भी था उसने कॉबेलिस्टिक जादू, ईजिप्टीयन रहस्यवाद, अरेबियन रहस्यवाद तथा जर्मनस्टेन्मटिज्म को सीखा था। ये सिद्ध करता है कि यूरोप में तान्त्रिक कर्म किस तरह से फैला हुआ था।
ये ही विश्व का विकसित महाद्वीप भारत में आने पर यहाँ के पूजा और ध्यान आदि को पिछड़े हुआ कार्य कहते हुये उसे अन्धविश्वास कहता है। जबकि हमारे महान् भारत में तान्त्रिक कर्म नहीं आध्यात्मिक साधनाएँ होती हैं और ये लोग उन्हीं को रुकवाना चाहते हैं ताकि ये नकारात्मक ऊर्जा के द्वारा हमारे हिन्दू धर्म को रोक सकें।
हेल फायर क्लब (नारकीय ज्वाला क्लब):- ये एक अत्यन्त गुप्त आसुरी संघ है ये फ्रीमेसनरी से सम्बद्ध था। इन दोनों ने मिलकर कुछ नया किया अथवा ये कहा जाय कि विश्व में कुछ अधिक आसुरि तत्त्वों को जन्म दिया तथा कुछ बुरे कार्यों में वृद्धि हुईं। खुले में ये दोनों के एक दूसरे सम्बद्ध नहीं मानते।
बेंजामिन फ्रैंकलिन नामक एक अन्य व्यक्ति भी था जो कि कई गुप्त संस्थाओं का अध्यक्ष तथा सदस्य था जैसे फ्राँसीस था। इनमें सबमें एक बात बड़ी सामान्य है कि ये सब तब तक नोबेल या सम्मानीय नहीं कहलाते थे जब तक ये ब्रिटेन की महाचुड़ेल से सम्मानित नहीं हो जाते थे। उस चुड़ेल से सम्मानित होने के बाद उसको न केवल सम्मान मिलता था अपितु इल्युमिनाटी के द्वार भी उसके लिये खुल जाया करते थे।
डा दिलीप कुमार नाथाणी

इल्युमिनाटी का इतिहास-15

एस्टर फ्रीमेसनरी में अधिक गहराई तक गया हुआ था। इसके कई मित्र थे जो कि इल्युमिनाटी के अन्य अनुषांगिक संगठनों के प्रधान थे उनमें से दो मुख्य थे एक बेन्जामिन और दूसरा फ्राँसीस डेशवुड ये दोनों नारकीय ज्वाला क्लब के प्रधान होने के साथ ही ब्रिटेन के डाक सेवा के प्रधान डाकपाल थे ये सभी फ्रीमेसन थे। इनको सभी डाकों को देखने व किसी भी संगठन के पारस्परिक संवाद को जानने का अधिकार था इनका समय 18 वीं शताब्दी का था। इस समय जो प्रधान डाक पाल बना सभी के सभी एक से बढ़कर एक दुष्ट थे यदि कहा जाय कि वे सभी रक्तबीज थे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जैकब एस्टर ने जर्मनी से इंग्लैण्ड और उससे आगे अमेरीका पहुँचा तथा उसके ब्लैक हाऊस परिवार से अच्छे सम्बन्ध थे यद्यपि वह एक युवा था तथापि उसके इस घोर आसुरी परिवार से कैसे सम्बन्ध बने से विचारणीय प्रश्न है। जैकब के एक भाई जार्ज ने उसे अमेरीका भेजा जहाँ उसने जार्ज के नाम से एक संगीत अकादमी बनाई और वहीं न्यूयार्क में दोनों ने अपने आपको तान्त्रिक विष्व में प्रस्तुत किया। वहाँ बैक हाऊस नामक एक कम्पनी थी जो कि फर यानि मुलायम खालों का व्यापार करती थी। वहाँ जैकब ने फर का पूरा व्यापार अपने हाथों में ले लिया। वहाँ ये कार्य करने का उनका एक विशेष तरीका था इनकी एक 300 तान्त्रिकों की एक परिषद् थी जो यही कार्य करती थी ये 300 जनों की परिषद् इल्युमिनाटीका एक प्रकट संगठन थी। उसी परिषद् ने इल्युमिनाटी को धनापूर्ति हेतु निर्णय लिया कि जैकब एस्टर पूरे अमेरीका में मुलायम खालों के व्यापार को अपने हाथों में ले लेवे। साथ ही उनका ये भी निर्णय था कि एस्टर के पास ही अफीम का भी व्यापार होना चाहिये इस प्रकार ये दोनों व्यापार उसके हाथ में सौंप दिय गये। इस प्रकार एस्टर परिवार अमेरीका प्रथम नशीले पदार्थ अफिम के व्यापार करने वाला परिवार हुआ। इस प्रकार इसका अफिम का व्यापार ऐसा स्थापित हुआ कि कोई भी अन्य अमेरीका का व्यापारी इस ओर अपने चरण न बढ़ा सका। उस समय अमेरीका के फर उद्योग में 1000 प्रतिशत का लाभ हुआ करता था। 300 की परिषद् ने ये निर्णय इसलिये लिया क्योंकि उस समय एस्टर परिवार वाल्डार्फ में अच्छा व्यापार कर रही थी और वह भी आसुरी परिवार में से एक था।
इस प्रकार जैकब ने शीघ्र ही अमेरीका के अन्य तान्त्रिकों से सम्पर्क स्थापित कर लिया। इस प्रकार जैकब ने स्वयं को एक ईश्वर का ऐसा विशेष मनुष्य बताया जोकि इस विश्व के किसी भी व्यक्ति के साथ कैसा भी व्यवहार करने के लिये स्वतन्त्र है। वह ही एकमात्र इस धरती की सभी वस्तुओं का उपभोग करने का अधिकारी है।
ये एस्टर अमेरीका के पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र में अपना अलग देश स्थापित करना चाहता था किन्तु उसका ये स्वप्न विफल हुआ इसके क्या कारण थे कहा नहीं जा सकता। एस्टर को पूर्व में ही पता था कि 1812 में अमेरीका में एक युद्ध होने वाला है वह इस युद्ध से लाभांश लेने केा तैयार हो गया था। उसका मेसोनिक भाई और जान आर्मस्ट्रांग ने उसकी सहायता की।
देा अन्य इल्युमिनाटी सदस्य जेफरसन और गालेटीन ने एस्टर को कई प्रकार के युद्धोपयोगी सामग्री बेचने में सहायता की और उसने पर्याप्त लाभांश कमाया। जब युद्ध निश्चित हो गया उस समय एस्टर ने अपना एक गुप्तचर कनाडा स्थित ब्रिटेन के एक किले में भेजा और सूचना दी कि उसने वहाँ ब्रिटेन के युद्धकौशल की जानकारी दी जो कि अमेरीका पहले ही जानता था। इसके आधार पर ब्रिटिश ने फर उद्योग पर अधिकार करना प्रारम्भ कर दिया। एस्टर के लिये भी आवश्यक था कि फर उद्योग पर उसी का एकाधिकार बना रहे। इसके लिये उसने राष्ट्रपति से विशेष अनुमति प्राप्त की कि वह सभी फर अपने स्वामित्व में आयात करके युद्ध से पूर्व कनाडा में उनका संग्रह करे ताकि जब आवश्यकता हो तो अपनी इस जमाओं सेवह मनोनुकूल लाभांश अर्जित कर सके। उसने इस अनुमति का ने केवल पुराने उत्पादित फरों के सग्रहण में प्रयोग किया अपितु उस समय उसने कई नये फरों का भी अवैधानिक तरीके संग्रहण किया। जब युद्ध समाप्त हो गया तो उसने अपने व्यापार से कई यूरोपीय व्यापारियों का बर्बाद किया तथा उनकी हत्याएँ भी करवाईं। उसने वाशिंघटन में सूचना भिजवाकर शत्रुओं की त्रुटियों से उन्हें अवगत करवा कर उन्हें परास्त करवाया। उसने लेटिन अमेरीकी देशों में युद्ध के समय उन्हें बन्दूकें और अन्य युद्ध सामग्री बेचकर अकूत धनसम्पदा एकत्रित की। लेटिन अमेरीकी देशों मेंजो भी आन्दोलन और क्रान्तियाँ हुईं वे सभी इस प्रकार के आसुरी इल्युमिनाटी संगठन के सदस्यों के द्वारा प्रायोजित ही थीं। जब एस्टर के साथ कोई व्यापारी फर का व्यापार करता था तो एस्टर उनको फर के बदले में पैसे लेन देन के स्थान पर उनको हुण्डी देता था, तथा बाद में अपने पाले हुये गुण्डे भेजकर उनकी हत्या करवा देता था। इस प्रकार एस्टर अपने पैसों को बचा लेता था, हत्याओं के लिये वह सभी वेस्टिंडियन को अपराधी बताता और सिद्ध करता था।
इस एस्टर का एक बेटा था विलियम बेकहाऊस एस्टर वह भी अपने पिता के ही समान क्रूर व अत्याचारी था। न्यूयार्क में वह किराये पर आवास उपलब्ध करवाता था वहाँ आवश्यक सुविधाओं के अभाव में रहते हुये कई किराएदारों ने विरोध किया उसने इसके लिये उनके आपस में ही दंगे करवा दिये तथा अन्त में न्यूयार्क के भ्रष्ट मेयर और पुलिस के द्वारा उन दंगों केा दबा दिया। वहाँ असंख्य लोगों की मृत्यु हुई थी।
इस विलियम का बेटा था जाॅन वह भी अपने पूर्वजों की ही भाँति अत्याचारी और क्रूर था। उसने स्वेट शाप्स खोला ये दुकान न्यूयार्क में निर्धनों के लिये मसाज करती थी। वह वहाँ के भ्रष्ट राजनेताओं को भी समर्थन दिया करता था। तथा इनमें अपने लिये जीवन जीने केअलावा कुछ नहीं था। ये मानव जाति के लिये अभिशाप थे।
डॉ.दिलीप कुमार नाथाणी
7737050671

इल्युमिनाटी बृहद् इतिहास-16


केनेडीपरिवार
शोध के अनुसार केनेडी परिवार इल्युमिनाटी के 13 मुख्य परिवारों में से एक
है, तथा वर्तमान में 20000 केनेडी उपनाम वाले अमेरीका में रहते हैं। ये
उपनाम 1890 तक आयरलेण्ड की सर्वाधिक प्रयोग में लाया जाने वाला उपनाम था।
यदि इसके वास्तविक इतिहास पर दृष्टिपात् करें तो हम पाते हैं कि एक
रामिफाइड आचिंक्लोस कबीले से इस परिवार का उ˜व हुआ है । वहाँ से कुछ
अन्य परिवार भी निकले थे तथा आगे जाकर उनमें परस्पर कई वैवाहिक सम्बन्ध
भी स्थापित हुये इस प्रकार इस केनेडी परिवार का विस्तार हुआ। अब प्रश्न
यह उठता है कि ये कौनसा कैनेडी परिवार है जो इल्युमिनाटी है तथा ये कब
तान्त्रित कर्म से जुड़ा। जो कबीला बताया गया था उनमें एक था ब्रायन
बोर्न वह ब्रायन केनेडी के नाम से भी जाना जाता था उसका भतीजा जो कि
काइनैडे के नाम से भी जाना जाता था। उनका आवास किलोहा के पास था इसीलिये
उनका किलाकेनेडी भी कहाजाता था। वहाँ इनके कुछ दासों ने इन्हें एक
क्षेत्र का प्रधान माना तथा ये लार्डस आफ आरमाण्ड के नाम से जाने जाने
लगे। आयरलेण्ड के उस क्षेत्र में आज भी केनेडी उपनाम के बहुतायत मेंपाये
जाते हैं। ये केनेडी 16 शताब्दी में अच्छे तथा शक्तिशाली थे। इस केनेडी
परिवार के तीन मुख्य शाखाएँ थीं डान यानि भूरे, फ्योन यानि श्वेत, रुआ
यानि लाल। 16 वीं शताब्दी में एक स्काटिश शाखा कहीं से आ पैदा हुई। उस
सन्दर्भ में कई किवदन्तियाँ हैं। मुख्य धारणा यह रही है कि वास्तव में
इनके एक ही पूर्वज थे तथा इनके अन्यों के साथ होने वाले विवाहोपरान्त
उनमें परस्पर मिलन हुआ और अधिकाधिक केनेडी परिवार फैलते गये।
अब यहाँ ये बताना आवश्यक है कि वहाँ जो मनुष्य देहधारी पशु जाति है उनमें
विवाह सम्बन्धी गोत्र विचार नहीं होते और वे जिससे चाहे विवाह कर लेते
हैं चाहे वो उनकी सगी बहन ही क्येांन हो तो इस प्रकार इनके उद्भव के
सन्दर्भ में विचार करना अन्यथा है, तथापि शोध कर्ता ने कई ऐसे केनेडी
परिवारों की खोज की है जिनको ब्रिटेनिया लुटेरे कबीले की प्रधान चुड़ैल
से सम्मान प्राप्त था और इसी आधार पर वे स्वयं को सम्मानित भी मानते हैं।
इन कई केनेडी परिवारों में एक स्काटिश केनेडी था मार्कस एैलिसा जिसका
समय 1872-1943 तक का था। एक अन्य केनेडी था आर्किबाल्ड केनेडी जो कि
केसीलिस का 15वाँ अर्ल पद पर स्थापित व्यक्ति था। ये अत्यन्त धनी व
तान्त्रिक शक्तियों से भरा हआ था। ये एक फ्रीमेसन था। स्काटलेण्ड की
ग्राण्ड लॉज में इसकी महत्त्वपूर्ण स्थिति थी। वह 1913 में वहाँ का प्रथम
प्रधान बना और अपनी मृत्यु तक बनार रहा। उसकी मृत्यु 1943 में हुई थी।
उसकी मृत्यु के उपरान्त उसका सारा महत्वपूर्ण दायित्व व पद उसके भाई को
सौंप दिया गया।
यूरोप में एक सेण्ट्र आहियो स्टारवुड फेस्टिवल नामक उत्सव मनाया जाता है।
ये उत्सव चुड़ैलों और नास्तिकों का उत्सव माना जाता है। वहाँ राबर्ट
एन्टोन विल्सन नामक का व्यक्ति बहुधा आया करता था। जोकि स्वयं को
प्रज्ञानिक कहलवाना पसन्द करता था तथा स्वयं को एलियस्टर क्राओली का
अनुलग्नक बताता था। प्रज्ञानिक से तात्पर्य है जो अतिन्द्रिय ज्ञान से
सम्पन्न हो। यूरोप में ऐसा तभी सम्भव है जब वह काले जादू अथवा नर बलि
जैसे विभत्स तक क्रूरकर्मों में लिप्त हो। जिस प्रकार यहाँ यूरोप के
इतिहास की शल्य क्रिया हो रही है। उससे मानों यही प्रतीत हो रहा है कि
वहाँ जिन लोगों के पास ऐसी आसुरी शक्तियाँ थीं वे ही राज करते थे।
सम्भवत: आज भी वहाँ वही घटित हो रहा हो।
एक पुस्तक है विडोस् सन ( विधवा का पुत्र) और The Historical Illuminatus
Chronicles (इल्युमिनाटी का ऐतिहासिक विवरण) के अनुसार कई शताब्दियों
पूर्व एक व्यक्ति था ब्रायन केनेडी वह ही प्रथम केनेडी था और उसी के रक्त
का मिश्रण कई अन्य लोगों में होता गया। इस प्रकार ये केनेडी नामक उपनाम
के लोगों का समूह बना। अब इससे भी यह तथ्य सर्वसिद्ध होता है कि एक ही
परिवार मे सगोत्रीय व्यभिचार वहाँ चलता है। इसीलिये इन गोरों में चर्म
रोग सर्वाधिक होता है।
विल्सन नामक व्यक्ति जो कि अपना अधिकाधिक समय चुड़ैलों और अतीन्द्रिय
ज्ञान साधने में लगा रहता है उसके अनुसार केनेडी परिवार इल्युमिनाटी
संगठन का एक महत्त्वपूर्ण परिवार है।
इल्युमिनाटी ने अपना मुख्यालय दक्षिणी कैलिफोर्निया में स्थापित किया है।
उनका ये मुख्यालय इसी शताब्दी में स्थापित हुआ है। ये स्वयं को गुप्त
रखने के लिये पूरी तरह से सन्नद्ध है। तथा इनको बाह्य कार्यों के लिये
सहायकों की आवश्यकता होती है तथा उनसे वे इतने ही संवाद करते हैं जितने
की इनको आवश्यकता होती है। ये अपने वंशवाद पर अत्यधिक अनुशासित और कठोर
हैं तथा किसी भी स्थिति में अपने मुख्य परिवारों के अतिरिक्त किसी अन्य
पर विश्वास नहीं करते। ये अपने सारे कार्यों में आसुरी शक्तियों का
प्रयोग करते हैं तथा उन्हीं के द्वारा उसको संचालित भी करते हैं। इनमं्
अलग अलग योग्यता के स्तर हेाते हैं जो कि चतुर्थ स्तर पंचम स्तर इस रूप
में व्याख्यायित होते हैं। निम्न स्तर के लोगों को आसुरी सेना कहा जाता
है। कैलिफोर्निया के सेन बर्नाडिनो के क्षेत्र में कुछ उच्चस्तरीय पूजारी
हुआ करते हैं जिनका योग्यता स्तर 2 या 3 का होता है। उन्हें वहाँ मास्टर
काउन्सलर कहा जाता है। 60 के दशक में कई ऐसे तृतीय स्तर की योग्यता वाले
1500 असुर तैयार किय गये किन्तु ये असुर अभी इल्युमिनाटी नहीं थे
क्येांंकि ये अभी भी निम्न् स्तरीय इल्युमिनाटी सदस्यों से भी निम्न स्तर
पर थे।
इल्युमिनाटी में एक समूह संरक्षण अथवा सुरक्षा का कार्य करता है वह है
एण्टोन लॉवै। ये मध्य स्तरीय संगठन है जो अपने से ऊपर चूड़ेलों के समूहों
के गुरू जो कि असुरों का पूजारी है उसके समान योग्यता रखते हैं। ये अपने
से नीचे के तृतीय स्तर वाले असुर सेना तथा अपने से ऊपर के इल्युमिनाटियों
के मध्य सेतु का कार्य करते हैं। साथ ही ये अपने ऊपर के इल्युमिनाटियों
के द्वारा किये गये बुरे कार्यों की साफ सफाई का कार्य करते हैं। तथा
प्रकट रूप में उन्हें समाज के समक्ष अच्छा बताते हैं। जिसे कहा जाये कि
ये वर्ग असुरों का देवता सिद्ध करने का कार्य करते हैं।
मर्लिन मुनरो
मर्लिन मुनरो एक जानी मानी हॉलीवुड की अभिनेत्री अथवा अमेरीका की कुख्यात
गणिका थी। इल्युमिनाटी का सफाई कर्मचारी वर्ग एण्टोन लावै ये जानता थाकि
किसी को शो मेन कैसे बनाया जाता है। इस वर्ग ने मर्लिन मुनरो को साथ में
लिया। उसे कई फिल्मों में अभिनय करने के अवसर उपलब्ध करवाकर उसे अमेरीका
के पूर्व राष्ट्रपति केनेडी से सम्बन्ध बनवाये। पुन: इल्युमिनाटी के इस
समूह ने जब राष्ट्रपति के चुनाव लड़ने चाहे और वह राष्ट्रपति बन गया उस
समय उसने एक पार्टी दी। उस पार्टी का स्वरूप यह था कि जो भी उस समय वहाँ
आया था चाहे वो राजनयिक हो अथवा अन्य कोई अतिथि उसके लिये मदिरा और गणिका
का प्रबन्ध किया गया था वो भी बिना हिसाब के । और केनेडी के पाँच वर्ष के
कार्यकाल में वाशिंगटन की मेफ्लोवर होटल के तल 8 का कमरा हमेशा उसके नाम
के लिये बुक था जिसमें उसके मर्लिन मुनरों के साथ विवाहेत्तर अनैतिक
सम्बन्ध थे। ( एफ बी आई की फाइल के अनुसार)

इल्युमिनाटी का बृहद्इतिहास-17

इल्युमिनाटी से सम्बन्धित केनेडी परिवार के दो भाग थे। ये केनेडी परिवार भी नशीले पदार्थों के व्यापार से सम्बन्धित थे। इनका एक व्यवस्थित अपराधी तन्त्र था जिसे माफिया कहा जाता था। ये लोग एक कार्यक्रम किया करते थे जिसे यूथनेसिया कहा जाता था इसका अर्थ होता है कष्ट से छुटकारा दिलाने के लिये किया जाने वाला वध एक तरह का तान्त्रिक कर्म जिसमें नरबलि का प्रावधान होता है। ये कार्यक्रम ब्रिटेनिया कबीले के प्रधान चुड़ैल की सुरक्षार्थ किया जात था। तथा इनके अपराधिक माफिया संगठन की स्थिरिता के लिये भी किया जाने वाला तान्त्रिक कर्म है।
इन इल्युमिनाटी परिवारों में पुरुष इल्युमिनाटी परिवारों की स्त्रियों से विवाह किया करते थे। इन परिवारों में महिला बहुतायात में इल्युमिनाटी नामक तान्त्रिक कर्म नहीं किया करती हैं ऐसे में उन पुरुषों को स्वयं का छुपाए रखने में अच्छी मदद मिलती है।
इस केनेडी परिवार का व्यापार में सम्बन्ध राथचाइल्ड परिवार से था। हमने पूर्व में रेनाल्ड और एस्टर परिवार के बारे में भी यही जाना था कि उनका भी व्यापार में रॉथचाइल्ड परिवार से सम्बन्ध था। प्रतीत होता है कि धन संग्रहण हेतु इल्युमिनाटी संगठन के अन्तर्गत सभी प्रधान परिवारों को रॉथचाइल्ड परिवार से व्यापारिक समझौते करने होते हैं। इसीलिये प्रत्येक परिवार इस रॉथचाइल्ड परिवार से आवश्यक रूप से सम्बद्ध है।
अमेरीका के राष्ट्रपति केनेडी के मरणोपरान्त उसकी पत्नी व माता की मृत्यु भी हो गई उसके बाद एक खोजी लेखक ने उनके जीवन पर पुस्तक लिखी तो पता चला मानसिक स्तर मापन इकाई के अनुसार केनेडी का आई क्यू स्तर मात्र 119 था। विद्यालय के समय में भी वह पिछड़ा हुआ विद्यार्थी था। वह सदा ही कमर दर्द से परेशान रहता था। उसके पिता ने द्वितीय महायुद्ध में भाग लिया था। किन्तु केनेडी को कुछ भी मिला तो आश्चर्य करने वाला था कि अयोग्य होते हुये भी उसे कुछ कैसे मिला। सेना में उसके द्वारा कई त्रुटियाँ हुईं तथा उसने सोचा था कि अब उसक साथ कोर्ट मार्शल हेागा। परन्तु उसके पिता के पास पर्याप्त धन था उसने सेना में उस धन का प्रयोग करके उसकी गल्तियों को अपराध के स्थान पर एक अकस्मात् आने वाली समस्या के रूप में सिद्ध करवा दिया। और उसी से केनेडी एक नायक बन गया।
उस खोजी लेखक की पुस्तक के अनुसार केनेडी के दादा ने कई प्रकार के कार्य किये 25 वर्ष की उम्र में वह एक सैलून का स्वामी था। उसके बाद उसने दारू बेची वहाँ से धन कमाने के बाद वह बैंकिग के क्षेत्र में गया और फिर उसने भ्रष्टाचार और अन्य तरीकों से धन का दुरूपयोग करते हुये राजनेता की पदवी प्राप्त कर ली। चुनावों में वह अपने लिये वोटर खरीदता था इस आधार पर उसने अपने क्षेत्र में अपनी अच्छी पकड़ बना ली थी। केनेडी का पिता जाय केनेडी जो कि उस समय चुनाव आयुक्त था स्वयं ने ये बात स्वीकारी कि उसने इस बार 128 बार मत का प्रयोग किया।
जाय केनेडी ने जिस इटालियन महिला के साथ विवाह किया था वह फिट्जेराल्ड परिवार से थी इस परिवार ने कई शताब्दियों पूर्व ब्रिटेन कबीले पर आक्रमणकारी विलियम की सहायता करके उसे उस कबीले का राजा बनने में सहायता की थी। जाय केनेडी का ससुर हनि फिट्ज था वह चुनाव फर्जीवाड़ा करने में ख्याति प्राप्त था गुण्डा था। जाय केनेडी ने उसकी बहुत सहायता ली थी। जाय की पत्नी कैथोलिक परम्परा की शिक्षा दीक्षा ली थी। इसके बाद जाय केनेडी ने स्टाक मार्केट में प्रवेश किया वह अच्छी तरह से जानता था कि कैसे शेयर व्यापार में शेयरों के मूल्यों को घटाया बढ़ाया जाता है तथा कैसे छोटे व्यापारियों को बर्बाद किया जाता है। वहाँ उसने ये काम प्रारम्भ कर दिया। जाय केनेडी कई अपराधी संगठनों के साथ पूरे अमेरीका मे असंवैधानिक रूप से शराब का व्यापार किया करता था। जाय केनेडी का जीवन व्यभिचार से भरा पूरा था। अनगिनता महिलाओं के साथ उसके सम्बन्ध थे। और अमेरीका के राष्ट्रपति केनेडी भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चला। जाय ने एक 15 कमरों और 9 स्नानाघर वाला घर खरीदा था।
अब यहाँ हम पाठकों से कहना चाहेंगे कि अमेरीका का राष्ट्रपति चरित्रहीन ही होते हैं, जैसे बिलक्लिंटन का भी चरित्र सर्वप्रसिद्ध है। वास्तव में यह भी सत्य है कि इल्यमिनाटी परिवारों में बहुधा स्त्रियों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने हेतु दबाव बनाया जाता है। और उनका बलात्कार होना एक आम बात है।
केनेडी का प्रारम्भिक जीवन कठिन था, उसके माता-पिता की ओर से वह उपेक्षित रहा इसीलिये उसके मन में अपनी माँ और पिता के प्रति घृणा थी। इन कारणों के रहते हुये वह अपने मित्रों में भी अपमानित रहा इसीलिये अमेरीका पूर्व राष्ट्रपति मानसिक कुण्ठित हो गया था। वह 17 वर्ष की आयु में वह वैश्यालय में जाना प्रारम्भ हेा गया। इसी दौरान उसका पिता सुरक्षा और विनिमय कमीशन का प्रधान बना। इल्युमिनाटी सदा अमेरीकी राष्ट्रपति के सलाहकार रहे हैं।
केनेडी के बारे में एक मिथक कहा जात है कि वह लन्दन के अर्थशास्त्र अध्ययन विद्यालय में एक वर्ष के लिये गया था किन्त सत्य है कि वह वहाँ एक माह के लिये गया था और वहाँ भ्री उसने कोेई शैक्षणिक कार्य नहीं किया।
यहाँ एक विशेष आश्चर्य का विषय है कि केनेडी के बारे में ऐसा मिथक बताया गया और लन्डन स्कूल आफ इकोनोमी की ओर इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। इसका सीधा सा अर्थ है कि जब से स्कूल और विश्वविद्यालयों का उद्भव हुआ तभी से फर्जी डिग्रियाँ देने का नियम भी बना हुआ है। जब विश्वप्रसिद्ध विद्यालय अमेरीका के राष्ट्रपति को झूठी उपाधियाँ देने न देने सम्बन्धी कोई तथ्य प्रकट नहीं करके चुपचाप बैठा है तब तो हमारे भारत की स्थिति इसके सापेक्ष पर्याप्त अच्छी रही है।
डॉ.दिलीप कुमार नाथाणी
07737050671

इल्युमिनाटी का बृहद्इतिहास-18



रॉकफेलर इल्युमिनाटी परिवार
इल्युमिनाटी के तेरह प्रधान परिवारों में से एक परिवार है रॉकफेलर परिवार वर्तमान में इसके कुल 190 सदस्य विश्व पर शासन के स्वप्न सजाए हुये हैं। वैसे इस परिवार के अन्य भी सदस्य हैं वे किसी अन्य उपनाम से हैं। इस परिवार द्वारा ईसाई सम्प्रदाय पर भी नियन्त्रण रखा जाता रहा है।
इस परिवार ने अपने तान्त्रिक कर्मों और उसके लिये किये जाने वाले अपराधों को अन्य इल्युमिनाटी परिवारों की तरह छिपाने के लिये 200 से लेकर हजारेां से अधिक संस्थाएँ व संगठन बनाए हैं। इन संगठनों के द्वारा वे अपने कुकर्मों को छिपाते हैं। ये परिवार निम्न कार्यों में अकूत धन व्यय करते हैं-
1. अमेरीका में कैथोलिक ईसाई पादरियों को प्रशिक्षण देने के लिये अकूत धन व्यय करते हैं।
2. अमेरीका में धर्माधारित ईसाई विश्वविद्यालयों विद्यालयों को खोलने व उनको चलाने में धन व्यय करते हैं।
3. इसी प्रकार की विभिन्न धार्मिक प्रचार करने वाले संगठनों को धन देते हैं, अथवा ऐसे संगठनों का निर्माण करते हैं।
4.ये परिवार अपने प्रभुत्व के आधार पर ये निर्धारित करता है कि समाचार पत्रों में प्रचार व प्रसार तन्त्रों के माध्यम से किसे महत्त्व व प्रसिद्धि मिलेगी किसे नहीं ।
5. ये अपने प्रभाव से कई ईसाई विरोधी संगठनों की स्थापना में भी धन व्यय करते हैं।
(ये आश्चर्यका विषय है। )
6. ये परिवार कई धार्मिक संगठनों व समूहों को सीधे सीधे नियन्त्रित करता है इसका सर्वश्रेष्ठ उद्धरण है ल्यूसिस ट्रस्ट
इस प्रकार ये परिवार कहीं अत्यधिक गम्भीर व सूक्ष्मता के साथ नियन्त्रण करता है तो कहीं औपचारिक रूप से। इस परिवार के विभत्स स्वरूप को प्रकट करने वाली एक पुस्तक लिखी गई है जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार इस परिवार ने ईसाई पादरियों, धार्मिक महाविद्यालयों और विद्यालयों को अपने कुत्सित अधिकार में ले रखा है। अधिकतर ऐसे स्थानों पर 90 प्रतिशत तक का धन इस रॉकफेलर परिवार की ओर से आता है। जैसे पूर्व के तीन परिवारों का मुख्य धन्धा नशीले पदार्थों का है। उसी प्रकार इस परिवार ने धार्मिक संगठनों व संस्थाओं को अपने प्रभुत्व में ले रखा है।
इस परिवार में एक बहुत बड़ा कोष इसीलिये बना रखा था कि प्रोटस्टेण्टों को कैथोलिक बनाया जाय। यानि कि धर्मान्तरण करने की परम्परा वहाँ अमेरीका में भी है। और अद्यापि प्रचलित है। इसक धर्मान्तरण करने का मुख्य ठेका न्यूयार्क में 1938 में स्थापित हुआ। इस प्रकार धार्मिक कार्यों की आड़ में ये अपना टेक्स बचाते हैं तथा अन्य देशों में भी धर्मान्तरण करवाके वहाँ के मूल निवासियो के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं तथा वहाँ के आय के स्रोतों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने का कार्य करतेे हैं।
यहाँ मैं अपने स्वयं के विचार रखूँ तो ये ही प्रतीत होता है कि ये इल्युमिनाटी संगठन मात्र यहूदी नहीं अपितु कैथालिक ईयाइयों व यहूदियों को ऐसा संगठन है जो आसुरी शक्तियों की प्राप्ति हेतु बौद्धों को अपने साथ रखते हैं परन्तु इनका मुख्य उद्देश्य विश्व को धर्महीन करना है धर्महीनता से तात्पर्य है हिन्दुत्व को समाप्त करना है। ताकि विश्व मात्र धन प्रधान हो जाय मानवता समाप्त हेा जाय।
यहाँ लेखक कर्इ् कैथालिक संस्थानों पर अधिक आरोप कर रहा है उसने कई चर्च नाम से प्रसिद्ध संस्थानों के नाम लिखे हैं, जो आसुरी शक्तियों को जाग्रत करने का कार्य करती हैं। वे प्रधान संस्थाएँ ही हैं जो कि विश्व को अपने शासन के अन्तर्गत लेना चाहती है तथा राकफेलर परिवार से प्राप्त सारे कोष का 95 प्रतिशत तक धन का प्रयोग ये संस्थाएँ ही करती हैं। इस धन का सर्वाधिक प्रयोग महान् भारत में धर्मान्तरण तथा धर्मान्तरण के नाम पर राष्ट्रान्तरण के लिये होता आया है।
यद्यपि मेरे पास कोई स्थायी व सशक्त प्रमाण नहीं है तथापि मेरा ऐसा मानना है कि भारत के कई राज परिवार भी इस इल्युमिनाटी संगठन से जुड़े हैं तथा ब्रिटेनिया कबीले की प्रधान चुड़ैल के अनुयायी हैं। यद्यपि ये मेरी मानसिकता ही हो सकती है, इसीलिये मैं इसे शाश्वत सत्य के रूप में नहीं कह सकता ये तो मात्र मेरे मन में उठने वाली एक भावना मात्र है।
इस पुस्तक में लेखक ने जो आरोप एक धर्म विशेष के वरिष्ठतम धर्मगुरू पर लगाये हैं उनको मैं यहाँ अनुवाद मात्र दे रहा हूँ ये मेरा व्यक्तिगत सोच नहीं हो सकती क्योंकि ये मेरा शोध पत्र नहीं है, किन्तु ये सेटानिक इल्युमिनाटी ब्लडलाइन्स नामक पुस्तक के लेखक ने जो तथ्य दिये हैं उनको पढ़ने के उपरान्त सभी के व्यक्तिश: विचार होंगे कुछ इसका समर्थन करेंगे कुछ विरोध करेंगे लेखक ने तो लिख दिया है। अब मानना अथवा न मानना हमारे हाथ में है हमारे विवेक पर स्थित है। इस लेखक के अनुसार पोप इल्युमिनाटी तो नहीं है किन्त इसके साथ इनके सम्बन्ध है और कई विषयों में इनके परामर्शों को स्वीकार भी करता है।


इल्युमिनाटी का बृहद् इतिहास-19


1- जैसा कि पूर्व में कहा गया है कि राकफेलर परिवार ईसाई पोराहित्य कर्म के प्रशिक्षणार्थ कई संस्थानों को धन उपलब्ध करवाता है। वस्तुत: वहाँ एक संस्था है यूनियन थियोलोजिकल सेमीनरी जिसका तात्पर्य है धर्म व पोरोहित्य का संगठन इस संगठन को पूरा धन रॉकफेलर परिवार उपलब्ध करवाता हैं। ये एक प्रोटेस्टेण्ट संगठन है। वर्तमान जो धन दिया जाता है वह इस औचित्य से दिया जाता है कि प्रेाटेस्टेण्ट धर्म की शिक्षा दिक्षा का प्रचार प्रसार किया जा सके।
2. ये परिवार कई धार्मिक विश्वविद्यालयों को शिक्षा देता है-1952 में यूगेन ई कॉक्स ने प्रथम बार रॉकफेलर परिवार को सबके सामने लाने का प्रयास किया तथा अमेरीका को उसकी सत्यता से अवगत करवाना चाहा। किन्तु सभी ओर से कॉक्स द्वारा बनाई गई समिति का विरोध होने लगा। और उस समिति के कई सदस्य बिमार हुये और मर गये। किन्तु उस समिति के देा-तीन सदस्यों ने अपनी जाँच बन्द नहीं की थी। किन्तु रॉकफेलर और उसके पत्र-पत्रिकाओं ने यथा सम्भव इस जाँच का विरोध किया तथा इसके न होने देने के लिये प्रयत्न किया। इस समिति को जाँच हेतु अत्यन्त न्यून समय और स्रेात दिये गये थे। इन विकट परिस्थितियों में भी जैसे जैसे ये समिति इस परिवार की सत्यता को सबके सामने रखना चाहती थी, उसी समय इस परिवार ने अमेरीका में उच्च शिक्षण संस्थानों को विपुल धन राशि प्रदान की उस समय अमेरीका में शिक्षा पर होने वाले कुल व्यय का दो तिहाई धन मात्र इस परिवार की ओर से दिया गया। अत: राष्ट्रशिक्षा संस्थान रॉकफेलर परिवार के धन से चलता हुआ दिखाई देने लगा। समिति के अध्यक्ष रेने वार्मस ने जाँच रिपोर्ट में लिखा कि हमारे यहाँ विद्यालयों के माध्यम से हमारे समाजवाद की स्थापना करना चाहते हैं। कुछ भी हो इस परिवार को अगले 40 वर्षों तक शिक्षा की व्यवस्था
3.रॉकफेलर परिवार कई धार्मिक संस्थाओं को आर्थिक सहायता देता रहा है। 31 जनवरी 1945 को न्यूयार्क की प्रोटेस्टेण्ट परिषद् में कहा कि ईसाइयत को चाहिये जीवित ईश्वर के चर्च उस समय किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि ये रॉकफेलर इल्युमिनाटी का ईश्वर के रूप में चर्च में स्थापित करना चाहते थे। ये इस प्रकार शान्ति से ईसाइयत के विरूद्ध एक षडयन्त्र था।
4. इस परिवार का प्रभाव विशेष था इसका प्रयोग करते हुये ये निर्धारित करते हैं कि किसका नाम पत्र—पत्रिकाओं में प्रसिद्धि हेतु दिया जाय किसका नहीं। इनकी स्वयं की कई पत्र पत्रिकाएँ निकला करती थीं। इनके माध्यम से ये किसी को भी ऊँचाई पर तथा किसी को अपमानित करते थे। ये पत्र—पत्रिकाएँ किस प्रकार धार्मिक क्षेत्र को प्रभावित कर सकती हैं ये भी समझने योग्य है। रॉकफेलर की एक प्रसिद्ध टाइम मेग्जीन है तथा उसके बोर्ड सदस्यों में प्रधान एण्ड्रयू हैस्किल एक अन्य इल्युमिनाटी परिवार से है जो कि 6 स्तर तक दीक्षित है। वहाँ एक लावै नामक असुरों का पूजा स्थल है उसके द्वारा वहाँ प्रचार तन्त्र की स्थापना की गई थी। 31 जनवरी 1967 को न्यूयार्क डेली न्यूज ने एण्टोन के बारे में एक समाचार प्रकाशित किया कि लावै ने अमेरीका प्रथम आसुरी विवाह समारोह का आयोजन किया। इसी प्रकार मार्च 1970 में मैकाल ने इस आसुरी उपासना स्थल के बारे में एक बड़ी रोचक सूचना प्रकाशित की। जिसमें में भी पूर्व की ही भाँति लावै के बारे में ही समाचार प्रकाशित किये गये था। 19जून 1972 को टाइम समाचार पत्र ने एक द आकल्ट के नाम से एक आलेख प्रकाशित किया।
5. कई ईसाई विरोधी संगठनों को धन सम्बन्धी सहायता देने का कार्य ये परिवार नियमित रूप से कर रहा था। रॉकफेलर का एक अच्छा मित्र था मार्सी जो कि गैया माता नामक एक देवी का भक्त था। इसी प्रकार कोरीया का एक रेवर्नड मून भी रॉकफेलर का अच्छा मित्र था तथा वह स्वयं को ईसामसीेह कहलवाता था। तथा अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रचार प्रसार करने का इच्छुक था। इसके पास लोगों के मस्तिष्क में अपने विचारों को स्थापित करने की अच्छी तकनीक थी तथा रॉकफेलर ने इसका बहुत सहयोग किया। ये लोग स्वयं का ईसाई कहते थे किन्तु इसाई विरोधी तथ्यों को पढ़ते और पढ़ाते थे। इनका एक व्यक्ति मार्कस बार्श जिसे रॉकफेलर ने शोध हेतु कई प्रकार से धन उपलब्ध करवाया वह यूनेस्कों की ओर सेे भारत में हिन्दूओं के शिक्षा तन्त्र पर शोध करने व उन्हें सुधारने के लिये भारत में आया था उसने क्या सुधार किये इसकी कोई सूचना वर्तमान में मुझे प्राप्त नहीं है। विश्व में मानसिक शिक्षा तन्त्र का अध्ययन तान्त्रिकों द्वारा ही किया जाता है।
6. कई धार्मिक संगठनों पर सीधे ही नियन्त्रण करना यथा ल्युसिस ट्रस्ट। इस ट्रस्ट का प्रधान कार्य है कि ऐसी शिक्षा यूरोप, अमेरीका आदि देशों में देना ताकि विश्व में एक ही धर्म व एक ही सरकार की स्थापना की जा सके तथा वह सरकार व धर्म, आसुरी धर्म व सरकार हो। ये संगठन साथ वंशानुक्रम को भी प्रकट कर रहा है कि कैसे असुरों का वंशवृक्ष था। थियोसोफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष एलियस बायली की पुस्तक के पृष्ठ 107 पर इसकी सूचि दी गई है।
यहाँ इस पुस्तक लेखक ने थियोसोफिकल सोसाइटी का भी वास्तविक स्वरूपा दिखा दिया कि ये भी गुप्त संस्थाओं का अनुषांगिक संगठन था जिसका उद्देश्य भारत में से हिन्दू धर्म को समाप्त करना और ईसाई धर्म की स्थापना करना है। अभी तक इस इल्युमिनाटी के अध्ययन से एक ही तथ्य उभर कर सामने आ रहा है कि ये संगठन कोई यहूदियों का न होकर एक ऐसा संगठन है जो अपने ईसाई धर्म की ही विश्व में स्थापना करना चाहता है। थियोसेाफिकल सोसाइटी ने बंगाल में जितना हिन्दू धर्म का बुरा कर सकना था किया राजाराममोहन राय ने इसमें उनकी बहुत सहायता की ये हमारे देश व धर्म के लिये हानिकारक रहा।
इस ल्यूसियस ट्रस्ट का मानना है कि जब हमारा विश्व पर एकछत्र राज्य स्थापित हो जायेगा तो ल्युसिफर का विश्व पर राजशासन रहेगा तथा शामबाला पवित्र नगरी होगी और आने वाला शासक विश्व का भगवान् होगा। जिसे ईसाई वर्तमान में असुर मानते हैं। ल्यूसिस ट्रस्ट ये जानती है इसीलिये उसे सेटन न कहकर सनतकुमार कहती है। यहाँ ये अत्यन्त आश्चर्य जनक नाम दिया गया है।

ILLUMINATI का बृहद् इतिहास-20

ल्युसिस ट्रस्ट
ये ट्रस्ट इस संगठन का अमेरीका में सबसे घातक शस्त्र है इस संगठन के कुछ कार्य अत्यन्त ही भयावह तथा विभत्स हैं। इस संगठन के अन्तर्गत जो कार्य किये जा रहे हैं उनमें भारत इनके लिये प्रधान आखेट का केन्द्र है। डेविड राकफेलर इस ट्रस्ट की प्रबन्धन समिति में प्रधान भूमिका में है। इन्होंने ने एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें इनके आसुरी वंश का वंशवृक्ष दिया गया है। साथ ही इस पुस्तक को अमेरीका, लन्दन व यूरोप के कई विद्यालयों में ये पुस्तक पढ़ाई जाती है जिसमें सम्पूर्ण विश्व में एक सरकार, एक धर्म तथा का आसुरी प्रारूप उनको पढ़ाया जाता है। इस संगठन का मानना है कि अब विश्व का जो किशोर आयु वर्ग है तथा जो युवा पीढ़ि उसे ही अपने विचारों से प्रभावित किया जाना आवश्यक है। अमेरीका,यूरोप व लन्दन में ये विद्यालय आर्कन विद्यालय के नाम से हैं। अथवा इनसे सम्बन्धित अन्य विद्यालयों में भी इस प्रत्यय का निर्माण बालकों के मन पर किया जा रहा है। एलिस बेली जो कि थियोसोफिकल सोसाइटी का अध्यक्ष तथा ल्युसिस संगठन का सदस्य तथा वर्तमान ल्युसिफर (असुर गुरू शुक्राचार्य) का अवतार माना जाता है। उसका मानना है कि मानवता के समाप्त हो जाने पर मेरा ही इस धरती पर शाासन होगा तथा पवित्र नगरी होगी शम्बाला। सभी जानते हैं कि वह एक असुर है तथापि प्रत्यक्ष रूप से उसे अच्छा दिखाने के लिये उसे सनत्कुमार का नाम दिया गया है।
सनत्कुमार एक सनातन ऋषि हैं उसका नाम ये लोग क्यों दे रहे हैं ये समझ से परे है। या सम्भव है कि ये स्वयं को प्राचीन हिन्दू आर्य परम्परा के अनुयायी ही सिद्ध करना चाहते हों।
रॉकफेलर चर्चों का प्रयोग अपने आसुरी ल्युसिफर योजना को कार्यान्वित करने के उद्देश्य से करता है। वहाँ शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति का ब्रेनवाश किया जाता है। तथा उनमें अपनी विचारधार की स्थापना की जाती है। इस प्रकार मस्तिष्क शोधन के बाद उन्हें अपने लिये दासों की बड़ी संख्या चाहिये जो उनके लिये कार्य करे। उन दासों पर बहुत कम मात्रा में प्रतिबन्ध होंगें। रॉकफेलर ने दक्षिणी अमरिकी महाद्वीप के कई देशों यथा ब्राजील, अर्जेण्टीना,इक्वाडोर, मोण्टे सेक्रोरांच, वेनेजुएला पेरू,उरूग्वे आदि में बहुत बड़े क्षेत्रफल में भूमि का स्वामित्व स्थापित किया हुआ हैं । इसके अलावा अमेरीका के न्यायार्क, वाशिंघटन तथा अन्य राज्यों में कई भवन, फ्लेट आदि हैं । मात्र न्यूयार्क में अपने सेवकों के लिये 2500 क्वार्टर बनाये हुये हैं।
विनथ्रेाप एक योन कुण्ठित समलिंगी है वह आर्कन्सास मे अपने एक काले पुरूष साथी के साथ रहता है।
उसके बारे में ये जानकारी है कि उसके पास विश्व का सबसेबड़ा अश्लील साहित्य व फिल्मों का संग्रह है। यहाँ एक बात बताना चाहता हूँ। अमेरीक का लॉस एंजलिस एक ऐसा नगर है जहाँ अश्लील फिल्म बनाने का विश्व का सबसे बड़ा कुण्ठित उद्योग है। तथा वहाँ भी ये लोग पैसा लगाते है। तथा इन फिल्मों का निर्माण करवाते हैं, ये फिल्में भारत में दिखाई जाती हैं तथा यहाँ इन चलचित्रों द्वारा यहाँ के नव किशोर वर्ग को मानसिक स्तर पर भ्रष्ट करते हैं फिर भारत के आस-पास छोटे छोटे द्वीपिय देशों में उस कुण्ठा के अनुरूप काम व्यापार का व्यवस्थित तन्त्र है जो हमारे युवाओं से पैसा व चरित्र दोनों ही चुरा लेते हैं। वर्तमान में ये अपराध बहुत अधिक जोरों पर चल रहा है। इस धन्धे में अभिनय करने वाले आपकेा सदैव गौरे ही होते हैं और वे एक धर्म विशेष से ही होते हैं। अत: यह भी एक षडयन्त्र ही है।
माइकल रॉकफेलर एक बार न्यूगुआना वहाँ के मूल निवासियों को धन लोभ देना चाह रहा था वहीं उसकी हत्या हेा गई। वैसे भी कई रॉकफेलर परिवारों ने तान्त्रिक कर्मों को करने के समय स्वयं के जीवन को कष्ट में डाला और मृत्यु को प्राप्त हुये। इस कारण उनके मन में सदा भय बना रहता था और उन्होंने अपने भवनों में कर्इ् सुरंगे और गुप्त द्वार बनवाये ताकि आवश्यकता होने पर वे भाग सकें। इस परिवार के अन्य सभी सदस्य इस प्रकार के तान्त्रिक कार्यों में लिप्त थे तथा स्वयं का ईश्वर सिद्ध करते थे तथा अन्यों को ये मानने के लिये प्रेरित भी करते थे। स्वयं के लिये असामान्य सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिये ये कई प्रकार कि आसुरी रीतिरिवाजों की पूर्ति करते हैं तथा उसमें नर बलि जैसा घृणित कार्य भी सहज ही करते हैं।
एक उच्च स्तर पर दीक्षित मेसोन था जिसने इल्युमिनाटी संगठन का छोड़ दिया तब अचानक ही उसने आत्महत्या कर ली किन्त उसके द्वारा लिखे गये कुछ तथ्य प्रकट हुये।
क्यों मैं प्रधान 13 इल्युमिनाटी परिवारों को ढक रहा हूँ?
अधिकतर लोगो के मन में यह प्रश्न रहता है कि कौन हैं ये तथा ये कैसे क्षमताशाली बने इन्होंने क्या क्यिा तथा वर्तमान में ये लोग क्या रहे हैंआदि आदि।
सत्यता ये है कि मात्र 13 इल्युमिनाटी परिवार हैं तथा इनमें अपने आनुवांशिक योग्यताओं को सहेजे रखने के लिये आपस में ही विवाह करने की परम्परा रही है। वर्तमान में जो इल्युमिनाटी हैं उनमें से आधे से अधिक लोगों को पता ही नहीं है कि वे किस इल्युमिनाटी परिवार की संतति हैं। उन लोगों को जब तक मुख्य इल्युमिनाटी नहीं आज्ञा करती तब तक नहीं बताया जाता कि वे किस परिवार से हैं। इनमें से कई इल्युमिनाटियों को भयानक रक्त रीति का हिस्सा बनाया जाता हैं ये एक अत्यन्त घोर तान्त्रिक साधना है जिसमें इनके रक्ता का प्रयोग किया जाता है जो कि दर्दनाक व अत्यन्त विभत्स है, इसी प्रकार की कार्यवाहियों के आधार पर ही वे समाज में अपने वर्चस्व का स्थापित करने में सक्षम हैं। इनका प्रतिकार मात्र दैवीय साधनाओं जप, तप, यज्ञ, तर्पण आदि कार्यों से ही सम्भव है। इसीलिये इनका सबसे बड़ा आक्रमण महान् आर्य सनातन हिन्दू जाति व भारत पर है। क्योंकि यहाँ का छोटे से छोटा बालक भी ईश्वर भक्त उत्पन्न होता है।
इनमें जो एम पी डी श्रेणी के असुर नहीं होते उन्हें ही इस भयानक रक्त परम्परा का शिकार बनना पड़ता है ये लोग ईसा के लिये अपना रक्त देत हैं इस प्रकार उन्हें धार्मिक स्तर पर बहलाया जाता है।
कई देशों में क्रिसमस के दिन बड़े बड़े क्रॉस बनाये जाते हैं तथा कई लोग उसे पर चढ़ते हैं वेउसी तरह उस पर चढ़ाए जाते हैं जिस प्रकार ईसा को चढ़ाय गया था। वर्तमान में उन्हें काँटों का मुकुट पहनाकर, उनके हाथों में बड़ी बड़ी कीले ठोक कर पैरों में कीले ठोक कर उन्हें लटकाया जाता है उसी में जो उनके शरीर से रक्त गिरता है वही इन असुरों के लिये तान्त्रिक कर्म करने के लिये उपयोगी होता है इस प्रकार के क्रूर कर्म में कई बार उन लोगों की जान भी चली जाती है। ये उसे सर्वश्रेष्ठ मृत्यु मानते हैं।


इल्युमिनाटी का बृहद् इतिहास-22
राथचाइल्ड परिवार

इस परिवार का इतिहास भी अधिक पुराना नहीं दिखता इसके विशय में प्राप्त तथ्य 1814 से प्रारम्भ हुये दिखते हैं।
यहाँ मैं एक विचार प्रस्तुत करना चाहूँगा कि ये इल्युमिनाटी कितना पुराना संगठन है अथवा नहीं ये तो कहा नहीं जा सकता किन्तु इन चोरों का एक समूह तो है जो अधिक पुराना नहीं है अथवा यू कहें कि इल्युमिनाटी का नया कलेवर हो। क्योंकि जब हम पुराने समय को देखते हैं तो वहाँ पर वे परिवार नहीं दिखाई देते जो वर्तमान में प्रधान इल्युमिनाटी परिवारों के बारे बताया जाता है परन्तु ये लोग अभी भी अपने प्राचीन परम्पराओं को चलाये हुये हैं जिनमें पुराने रोमन और बुद्ध धर्म के तान्त्रिक प्रक्रियाओं का प्रयोग बहुतायात में दिखाई देगा।
ये रॉथचाइल्ड परिवार भी कई प्रकार के ऐसे कार्यों में लिप्त रहा ताकि विभिन्न देशों से बहुतायात में धनार्जन कर सके। इसीलिये इसने फिलीस्तीन में रेल्वे का ठेका जर्मनी को दिलवाया अब उसके प्रतिकार में जर्मन ने क्या सहयोग किया होगा? स्वयं सिद्ध है।
रॉथचाइल्ड के अनुसार धन ही ईश्वर है वे धन प्राप्ति हेतु कुछ भी कर सकते हैं तथा उन्होंने कई बार अपनी आत्मा को इस झूठे और काल्पनिक ईश्वर को बेचा है। कई बैंकें स्वयं को रॉथचाइल्ड का भक्त बताते हैं। इसने अपने हस्ताक्षर व मुद्रा (सील) सोलोमन की मुद्रा की तरह बनवाई हुई है। ये एक ज्यूईश है। वर्तमान में रॉथचाइल्ड परिवार के वंशज लन्दन में प्रतिदिन दो बार मिलते हैं तथा उनका ये विषय होता है कि किस तरह विश्व पर शासन किया जाय तथा इसके लिये अधिकाधिक मात्रा में स्वर्ण भण्डार हमारे पास सुरक्षित होना चाहिये।
पुस्तक के लेखक ने रॉथचाइल्ड के ब्रिटिश स्थिति आवास में एक अन्य भगवान् को भी देखा है वह है साक्षात् असुर यानि शैतान। अर्थात् ये कई पीढ़ियेां से असुरों के पूजक रहे हैं। रॉथचाइल्ड परिवार के पास जो मुद्रा (सील) है वह इतिहास में अत्यन्त महत्त्व रखती है (यूरोप के रोमऩ ग्रीस़ व इजिप्टियन इतिहास में )। इस मुद्रा को हेक्सागोऩ मागन डेविड़षट्कोणीय तारा डेविउ का तारा आदि नामों से जाना जाता है। रॉथचाइल्ड से पूर्व सोलोमन की इस मु्द्रा को ज्यूईश सम्प्रदाय के लोग प्रयोग में नहीं लाते थे। इनसे पूर्व अर्व (अरब) के मायाकार (जादूगर) केबेलिस्ट मायाकार(जादूगर) ड्रूईड्स चुड़ैले व असुर ही इसका प्रयोग करते थे। इस प्रकार का एक अन्य अत्यन्त प्राचीन चिह्न तेल अवीव स्थित 1200 वर्ष पुरानी मस्जिद में कुट्टि (फर्श) पर प्रयोग में लिया गया है।
ईसा की बाहरवीं शताब्दी में एक ज्यूईश व्यक्ति था मेनाहेम बेन दुजी वह स्वयं को मसीहा समझने लगा इसीलिये उसने ऐसे मायावी चिह्नों का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। चूँकि रॉथचाइल्ड भी असुरोपासक थे इसीलिये उन्हेोंने इस तान्त्रिक चिह्न का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया।। 1822 में इन्होंने ये प्रथम बार प्रयोग किया तथा इसे कोर्ट-आफ-आर्म्स कहा गया।
वास्तव में 17 वीं शताब्दी में एक व्यक्ति था मेयर एमशेल बॉर ने अपने घर के बाहर एक लाल रंग का षट्कोणकृति का चिह्न लटकाना प्रारम्भ किया। उसी ने अपना नामकरण रेडशील्ड (जर्मन भाषा में रॉथचाइल्ड ) रखा,तथा उसी दिवस से उन्होंने इस लाल मुद्रा (सील) का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया।
प्रारम्भ में ये लोग यूरोप के ही विभिन्न नगरों व ग्रामीण अंचलों में रहे तथा 1836 में रॉथचाइल्ड ने जेवी हीर्श कालीशेर से पूरा ईस्राइल खरीदने का सौदा किया। तथा उसके बाद लगभग 100 वर्षों के उपरान्त इनको इस्राईल प्राप्त हुआ। अत: रॉथचाइल्ड इस्राईल बनाने में प्राथमिक स्रोत के रूप में थी।उसी कारण ये आज भी सोलोमन की मुद्रा (सील) को ही अपने देश की राजकीय मुद्रा के रूपा में प्रयोग में लाते हैं।
कई परम्परावादी ज्यूईश आज भी ईस्राईल से प्रसन्न नहीं हैं उनका मानना है कि वर्तमान में इस्राइल की स्थापना वास्तविक ईश्वर ने नहीं कि अपितु एक धनी असुर ने की है इसीलिये वेइसे उचित नहीं ठहराते।



इल्युमिनाटी का बृहद्इतिहास-24


आसुरी व तान्त्रिक माध्यम से विश्व पर नियन्त्रण के माहिर

इल्युमिनाटी की सभी आनुषांगिक परिषदों में संख्या 13 को ही महत्त्व दिया गया है अत: इनकी इस प्रकार काले व बुरी तान्त्रिक विद्या व कर्म हेतु जो परिषद् बनाई गई उसमें भी सदस्यों की संख्या 13 ही है। ये मैलीविद्या की परिषद् भी रॉथचाइल्ड के निर्देशन में कार्यरत है। इसमें पूर्ण रूप से आसुरी परम्परा का आविर्भाव ज्यूईश परम्परा के साबाटैन शाखा के फैंकिस्ट स्पीनोफ से हुई है। इस साबाटिन शाख का संस्थापक साबाटै जेवी (1626-1676) था ।
असुर, दानव और धन में आपसी सम्बन्ध है,धन स्वाभाविक रूप से दानवीय भावों का आकर्षित करता है। ऐसा यहाँ लेखक लिखता है, किन्तु भारतीय परम्परा में सोच थोड़ी भिन्न है, यूरोप और ईसाईयत में यह सोच इसीलिये क्योंकि इनके मसीहा ने कहा था कि किसी धनी व्यक्ति का स्वर्ग में प्रवेश पाना उतना ही कठिन है जितना एक ऊँठ का सुई के छेद में से निकलना।
इसका कारण हमें प्राचीन रोम, ग्रीस, ईजिप्ट,सिसली, मेसीडोनिया, आदि कबीली संस्कृति में सहज ही दिखाई देता है कि किस प्रकार वहाँ के सामान्य नागरिक अपने से श्रेष्ठ नागरिकों के द्वारा कई स्तरों पर प्रताड़ित होते थे।
यहाँ हम थोड़ा सा दृष्टिपात् प्राचीन पाश्चात्य जगत् पर करें तो सहज ही वहाँ की स्थिति तथा उनके द्वारा हमारे यहाँ की गई धृष्टताओं को भी समझा जा सकेगा। वस्तुत: मानव मानव में श्रेष्ठ व उच्च का भेद प्राचीन रोम व ग्रीस की देन है। वहाँ पर माता-पिता अपनी ही सन्तान को लावारिस छोड़ देती थी, तथा उसका सामाजिक स्तर पर पालन होता था। वहाँ लावारिस शिशुओं को पालने के लिये कुछ भवन बने हुये थे जिन्हें ये लोग यार्ड कहते थे। उन्हें ही आधुनिक युग मे कान्वेण्ट कहा जाता है वहाँ इनको शिक्षा भी दी जाती थी। बहुधा इन्हीं बालकों को दास बनाया जाता था जो कि द्वितीयक श्रेणी के नागरिक होते थे इन्हें उच्च वर्ग के साथ उठने बैठने की अनुमति नहीं थी। इनके आवास ऊँचे नागरिकों से परे तथा अस्पृश्य हुआ करते थे। बहुधा तो ये उच्च वर्ग के यहाँ नौकरी करने जीवन दॉव पर लगाने वाली कुश्ती में अथवा यौन दास के रूप में कार्यरत रहते थे। तथा इनमें से कई तो बाल्यावस्था में ही मारे जाते थे। कारण था कि प्राचीन रोम, ग्रीस, ईजिप्ट, सिसली, रेामानिया,जर्मनी, मेसीडोनिया, ब्रिटेन, बेल्जियम आदि स्थानों में ये धारणा थी कि छोटे बालकों के रक्त में रोगों को समाप्त करने की क्षमता होती है। अत: ये लोग 4 वर्ष से लेकर 9 वर्ष तक के बालकों का रक्त पिया करते थे। उस समय किसी नाड़ी में सुई डालकर किंचित् आसान विधि से रक्त नहीं निकाला जाता था अपितु उनकी कलाईयों पर तीखी छुरी से चीरा लगाकर उसमें सेनिकलने वाले रक्त को एकत्रित किया जाता था। इस कारण से कई बालकों की मृत्यु ही हो जाती थी।
जिन बालकों की मृत्यु हो जाती थी उन्हीं के माँस को अन्य बालकों का खिलाया जाता था। ऐसे में माँस कच्चा हो अथव पका हुआ इस पर कोई ध्यान नहीं होता था। इस प्रकार के अमानवीय कार्यों से जो दास बच जाता था। वह स्वयं भी अमानवीय हुआ करता था। ऐसे ही अमानवीय मानवपिण्डाकृति को जीवन दाँव पर लगने वाली कुश्ती प्रतिस्पर्धा में प्रतियोगी के रूप में उतारा जाता था। उस पर उच्च वर्ग के लोग द्यूत क्रिया किया करते थे।
इन सबके बारे अरस्तु (एरिस्टोटल), प्लेटो,सिसेरो आदि ने भी लिखा है तथा इन सभी महान् दार्शनिकों ने दासों के सामान्य नागरिक अधिकारों को अनुचित मानते हुये उन्हें योनाचार हेतु उच्च वर्गके लोगों के अधिकृत बताया है।
इस प्रकार का चरित्र रहा है रोम, इटली, सिसली,ग्रीस, ईजिप्ट, जर्मनी, ब्रिटेन आदि की प्राचीन सभ्यता का उसी के कारण वहाँ अत्यधिक रक्तपात्, अपराध, कठोर व क्रूर विधिनियमों की आज भी आवश्यकता है।
इसके सापेक्ष महान् आर्यावर्त में धन को शुभ लाभ के रूप में ग्रहण किया जाता था, क्योंकि विश्व की सर्वप्राचीन महान् आर्य सभ्यता के अनुसार शुद्धि में सर्वाधिक महत्त्व धन शुद्धि को दिया गया है कि धनागम सत्य मार्गों से होना चाहिये अन्यथा मनुष्य दानव बन जाता है। यही कारण है कि यूरोप, अमेरीका, आस्ट्रेलिया आदि प्रेदशों में धन प्राप्ति हेतु दानवीय परम्परा अद्यापि प्रचलित है। इसीलिये हम श्रेष्ठ हैं।
अब लेखक के तथ्यों का भारतीय दृष्टिकोण से आंकलन करें कि धन दानवों के लिये आकर्षण का केन्द्र हेाता है तो क्यों लेखक ऐसा कह रहे हैं? इसका उत्तर हमें इतिहास के पितामह श्रीकृष्ण द्वैपायन वेद व्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत महापुराण में प्राप्त होता है कि परीक्षित ने जब कलियुग को पृथ्वी पर रहने का अधिकार दिया तो चार वस्तुओं में दिया द्यूत यानि जुआ, व्यभिचार, अपराधिक विधियों से कमाया गया स्वर्ण, चोरी में तो ये चारों ही क्रियाएँ पाश्चात्य जगत् में बहुतायाता में दिखाई देती हैं। अपितु कहा जाय कि पूर्णरूप से दिखाई देती हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। इसीलिये लेखक ने कहा है कि धन दानव को आकर्षित करता है। पाश्चात्य जगत् में धन असामान्य विधियों से ही अर्जित किया जाता रहा है। विश्व का अपना दास ब्रिटैन ने बनाया उसमें फ्राँस, जर्मनी, रूस, बेल्जियम, नार्वे,पुर्तगाल, इटली आदि सभी देश सम्मिलित रहे सभी ने अपने अपने कई उपनिवेश बनाये किसी एशिया को किसी ने अफ्रिका को बनाया था।


इल्युमिनाटी का बृहद्इतिहास-25

विश्व के कैथोलिक व सीजर चर्च की व्यवस्था करने वाले तथा परम्परावादी चर्चों की व्यवस्था को हथियाने वाले
ये सारे संगठन पूरी तरह से ईसाई विरोधी हैं ऐसा लेखक दर्शाना चाहता है किन्तु सत्य क्या है। ये तो वे जाने किन्तु हम तो जो लेखक प्रस्तुत कर रहा है उसका मात्र हिन्दी अनुवाद किंचित् टिप्पणीयों के साथ दे रहे हैं।
लेखक के लेख के अनुसार 19 शताब्दि के पूर्वार्द्ध में पोप ने रॉथचाइल्ड से कुछ धन उधार लिया उस समय रॉथचाइल्ड पोप के प्रति पर्याप्त निष्ठावान् था। उसके स्वागत में उसने पोप के हाथ चूमे। रॉथचाइल्ड उस समय वेटिकन के प्रति पर्याप्त आस्था रखा करता था। जैसा कि पुस्तक द ज्युइश एनसाइक्लोपिडिया भाग- पृष्ठ 497 पर लिखा है। एक शोध कर्ता इय्स्टिस मुलिन्स का कथन है कि रॉथचाइल्ड ने 1823 मे रॉथचाइल्ड ने सम्पूर्ण विश्व के सभी कैथोलिक चर्चों का की आर्थिक प्रक्रियाओं का अपने हाथों में लिया था। यही कारण है कि विश्व में बैंकिंग व अन्य कई व्यापारिक लेन-देन करने वाली संस्थाओं का तथा कैथोलिक चर्चों का पारस्परकि अन्त:सम्बन्ध बना हआ है। पुन: इन सबका रॉथचाइल्ड से सम्बन्ध है। ऐसे में विश्व बैंकिंग व्यापार का बहुत बड़ा अंश रॉथचाइल्ड के हाथों में है।
इस रॉथचाइल्ड ने रूस में हुई क्रान्ति में धन से सहयोग किया तथा उस समयकाल में कई पारम्परिक चर्चों को इन्होंने कुर्क कर दिया था। माउण्डबेटन जो कि रॉथचाइल्ड से सम्बन्धित था। इसका कार्यथा कि जो धन रूसी क्रान्ति के लिये रॉथचाइल्ड ने व्यय किया है उसे स्वर्ण के रूप में वापस कैसे लाये जायें। उसी कार्य को अपने लक्ष्य तक पहुँचाया और 5 करोड़ डॉलर के रूप में लिये।
जैसा कि कहा है कि पाश्चात्यों में ये सोच कि धन व दानव का परस्पर आकर्षण बना रहता है,लेखक ने यहाँ इस संगठन द्वारा अमेरीका के मुद्रा हेतु उत्पादित किये जाने वाले कागद पर चिन्ता व्यक्त की है। उन तथ्यों की यहाँ प्रासंगिकता नहींहै।
आर्थिक व्यवस्था पर अधिकार करने का मुख्य उद्देश्य है कि ईसाईयों व मुसलमानों का खत्म किया जाय । क्योंकि इनकी धारणा ईसाई और मुस्लिम ईश्वरीय विश्वास मे नहीं हैं अपितु ये यहूदी ईश्वरीय अवधारणा में विश्वास करते हैं। इसीलिये इनका ये प्रयास है कि इन दोनों को ही समाप्त किया जाये।
सत्रहवी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में दक्षिणीपूर्वी पोलेण्ड में कुल 1100 से 1200 ज्यूईश (यहूदी) परिवार ईसाई बने। शेष अलग अलग प्रकार के व्यापारी थे ये सभी फ्रैंकफर्ट में हुआ था।
धर्म के आधार पर कई विभाग व युद्ध हुये है। इसमें कईयों को धार्मिक भावनाओं के आधार पर मूर्ख बनाया जाता है।
प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मन की हार के समय में रॉथचाइल्ड ने मध्यस्थ दलाल का कार्य किया था और उसी ने राष्ट्रमण्डल या लीग आॅफ नेशन्स बनाने का कार्य किया था। रॉथचाइल्ड ने बेवेरिया पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया था। ये म्यूनिख की लॉज् संख्या 11 में एक फ्रीमेशन था।
एम-15 रॉकफेलर और जे पी मोरगन के आपसी सम्बन्ध
विक्टर रॉथचाइल्ड जो कि जे.पी. मोरगन एण्ड कम्पनी के लिये कार्य करता था तथा उसका एम—15 नामक संगठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। विक्टर भी साम्यवादी था, तथा केम्ब्रिज के एक एपोस्टल क्लब का सदस्य भी था। रॉथचाइल्ड गोलमेज परिषद् का मुख्य सदस्य था। इस रॉथचइल्ड ने राड्स के साथ मिलकर अफ्रिका मे अपने अड्डे बनाने प्रारम्भ किये इसके प्रारम्भिक समय में ये लोग वहाँ से मनुष्यों को आयात करते थे, तथा यूरोप के सभी देशों में जू बनाये गये उसमें अफ्रिकी मुनष्यों को पशुओं की भाँति रखा गया, ऐसे ही वहाँ से दासों को अमेरीका भेजने का व्यापार प्रारम्भ हुआ। इसके लिये रॉथचाइल्ड के पास कई दलाल थे जो ये कार्य किया करते थे। रॉकफेलर भी रॉथचाइल्ड की ही भॉति ज्यूईस यानि यहूदी था। ये रॉकफेलर मारानो यहूदी थे। आप सभी को पता होना चाहिये इस्राईल में जो यहूदी इस्राइल नष्ट होने के बाद बिखरे थे वे कुल नौ कबीले थे और इस्राइल बनने के बाद 8 कबीले ही मिले नवां कबीला गुम हो गया वेा नवां कबील सन! 2013 में भारत के अरुणाचल प्रदेश में मिला उनके कुल 810 सदस्य थे उनको यहाँ से ले जाया गया। 2014 अगस्त में उन्हेांने इस्राइल में अपना स्थान प्राप्त कर लिया।
रॉथचाइल्ड का ने केवल कई गुप्त संस्थाओं के साथ सम्बन्ध थे अपितु इसके क्रिस्श्चिेनडोम के चर्चों से भी सम्बन्ध था। ईसाईयों की मुक्ति सेना जो कि रॉथचाइल्ड के निर्देर्शों पर कार्य करती थी। इनके प्रत्येक निर्देशों पर लाल मुद्रा (सील ) अंकित हुआ करती थी, जिसे सोलोमन की मुद्रा कहा जाता था। ये मुक्ति सेना यूरोप के इतिहास में निरंकुश थी इस पर किसी भी देश में प्रतिबन्ध नहीं था।
इन रॉथचाइल्ड में से कुछ थे जो सामान्य सामाजिक आदर्शों के विरुद्ध बोला करते थेजैसे जॉन राथचाइल्ड जो कि राष्ट्रीय विद्यार्थी परिषद् का सचिव था। उसने वस्त्रो व परम्परागत पहनावे के विरुद्ध बोला। इसने पूरा प्रयास किया कि सार्वजनिक रूप से नग्नता को प्रोत्साहित किया जाय तथा सामान्य लोगों को नैतिक रूप से पतित किया जाय। एक समाजवादी समूह था जो उच्छृंखल व्यभिचार को प्रोत्साहित करने के लिये प्रयत्नशील था। इनके अन्य सहयोगी संगठन थे रेडक्लीफ लिबरल क्लब, यूनियन थियोलोजिकल सेमीनेरी काण्टेमपरेरी क्लब, येल लिबरल क्लब आदि।
ये लोग व्यवस्थित विधियों से यूरोप और पूरे पश्चिमी ईसाई विश्व को तो बर्बाद कर चुके हैं अब इनकी आँखों की किरकिरी बनी हुई है हमारी महान् संस्कृति इसी कारण भारत में चलचित्र (फिल्मों) आदि के माध्यम से वही कार्य यहाँ भी किया जा रहा है।
इसके लिये सर्वप्रथम है कि हम स्वयं को संयमित करें विशेष कर पुरुष वर्ग संयमित होवें और अपने घर में मातृशक्ति के वस्त्रपरिधान पर विशेष ध्यान देवें। अंग्रेजी माध्यम में नहीं पढ़ाए अपितु उन्हें हिन्दू माध्यम में पढ़ाएँ और मिशनरी स्कूलों में तो कतई नहीं भेजें।

इल्यमिनाटी का बृहद् इतिहास-26


स्रोतों के आधार पर लेखक लिखता है कि सम्पूर्ण विश्व के अर्थतन्त्र का आधे से अधिक हिस्सा न्यूयार्क की फेडरल बैंक द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, ये फेडरल बैंक पाँच अन्य बैंकों द्वारा संचालित हैं, जो इस बैंक के 53 प्रतिशत अंशों की धारक हैं। ये पाँच बैंकें नाथन एम रॉथचाइल्ड एण्ड सन्स लन्दन द्वारा नियन्त्रित हैं। अत: अमेरीका की फेडरल बैंक पर नियन्त्रण से तात्पर्य है विश्व के धन पर नियन्त्रण करना। ये तथ्य सिद्ध करता है कि राथचाइल्ड परिवार के पास कितना बल व सामर्थ्य है।
यदि गम्भीरता पूर्वक ये जानने का प्रयास किया जाय कि इन बैंकों के नियामक, संचालक कौन हैं, तथा उनका चुनाव कैसे होता है, तो उसमें स्पष्ट दिखेगा कि उनके चयन में रॉथचाइल्ड का हाथ है, और ये सभी विभिन्न प्रकार के तान्त्रिक कर्मों में लिप्त हैं। इस प्रकार यदि विश्व का आधे से अधिक धन पर यदि एक ही समूह का स्वामित्व रहेगा तो वह ही मित्रराष्ट्र के रूप में अपनी स्थापना करेगा।
मित्रराष्ट्र अथवा मैत्री सहसम्बन्ध
रॉथचाइल्ड और रॉकफेलर ये दो परिवार ही इल्युमिनाटी के 13 परिवारों को नियन्त्रित करती हैं। ये दो ही ज्यूईश परिवार है इनमें से एक प्रारम्भ कालेन परिवार से सम्बद्ध था तथा दूसरा बेवेरियन इल्युमिनटी का हिस्सा था। इनकी एक संस्था है लीग आफ द जस्ट जो कि मुख्यत: ज्यूईश परिवार के संचालित हैं, तथा असुरों की उपासना करते हैं। इन परिवारों ने ही मेसोन सदस्य कार्लमार्क्स का साम्यवाद पर लिखने के लिये प्रेरित किया तथा इनके ही द्वारा 1848 में जर्मनी में साम्यवादी आन्दोलन हुआ। साम्यवादियों के द्वारा ये अधिकारिक स्तर स्वीकार किया गया है कि बन्द नामक संगठन ही इनके प्रारम्भ का सूत्रधार रहा।
ओपनहेमिस और ओपनहेमर्स ये दो प्रकार के सदस्य इल्युमिनाटी के रहे हैं इनमें ओपनहेमर्स रॉथचाइल्ड के अधिक निकटस्थ थे। इन ओपनहेमर्स में एक ज्यूईश दी बीर्स है जिसका विश्व में हीरों के व्यापार में एकाधिकार है तथा वह ऐंग्ला अमेरीकन कार्पोरेशन का चेयरमेन। इन ओपहेमर्स की अमेरीका में अच्छी आर्थिक क्षमता है। ये कई संगठन चलाते हैं उनमें से एक संस्था है ओपनहेमर्स हॉस ट्रस्ट जो कि न्यूयार्क में ऐसे ज्यूईश बालकों को सहायता उपलब्ध करवाती है जिन्हें चाहिये।
ज्यूईश विश्वकोश के भाग-2 पृष्ठ 496 पर लिखा है कि सभी ज्यूईश (यहूदी) परिवारों ने ये रॉथचाइल्ड द्वारा बनाये गये इस नियम को स्वीकार किया है। जिनमें लाजार्ड, स्टर्न, स्पेयर्स,सेलिग्मान्स आदि परिवारों ने विशेष कर इस नियम को अंगीकार किया है। रॉथचाइल्ड की योजना है कि यूरोप के पाँच प्रधान राजधानियों में अपने परिवारों को स्थापित करके वहाँ नियन्त्रण स्थापित किया जाय। इनमें से जर्मनी की सर्वाधिक बड़ी समाचार पत्र समूह है स्टर्न,अर्नस्ट स्टर्न ये दोनों ही विश्वबैंक को प्रभावित करने में द्वितीय स्थान पर हैं। ज्यूईश परिवारों ने ही फ्रैंकफर्ट में एक लॉज की स्थापना की थी।
क्रोमवेल को ज्यूईश (यहूदियों) ने आर्थिक सहायता की तथा इंग्लैण्ड में बाहुबली बनने में सहायता भी की थी। क्रोमवेल ज्यूईश (यहूदियों) की विचारधारा से सहमत हो गय था तथा ब्रिटेन को इस्राईल का उपनिवेश बनाने में सहयोग कर रहा था। इसके पीछे तर्क था कि ब्रिटेनिया कबीले के वंशज वास्तव में इस्राईली कबीले के थे।
दिलीप कुमार नाथाणी
07737050671

8 comments:

  1. Don't you think that Kaliyuga's ruler Kali might be connected to this and also the all seeing eye of illuminati can also be connected to one eyed shukracharya.also in kalkipuran the descendents of Kali are described as Brahmins (Jews) who actually spread irreligion among the non aryans(mleccha) .They are also said to be of elite class and survive through usuary(bank interest).Your thoughts???

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